(Commercial Beekeeping with 100 Bee Colonies)
पारंपरिक खेती में बढती लागत और घटता मुनाफा ने किसानों को मधुमक्खी पालन कम लागत में अतिरिक्त आमदनी का एक मजबूत जरिया प्रदान किया है। गॉव की पगडंडियों के किनारे लगने वाले वृक्षों और फसलों के फूल अब शहद में बदलकर किसानों की आमदनी में मधुमक्खियॉ मिठाश घोल रही हैं। मधुमक्खियाँ अब सिर्फ फूलों से रस नहीं चूस रहीं, बल्कि किसानों के जीवन में आर्थिक समृद्धि भी ला रही हैं। खेती के साथ मधुमक्खी पालन से परागण क्रिया बढ जाने से फलों, सब्जियों और अनाजों का उत्पादन 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
खेती के बदलते परिदृश्य में किसानों के लिए मधुमक्खी पालन नई उम्मीद बनकर उभरा है। सरकार की योजनाएं, जागरूकता अभियानों और बाजार की बढ़ती माँग ने ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन को नई ऊर्जा मिली है। किसान और ग्रामीण अब इसे एक पूरक आय के रूप में नहीं, बल्कि मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाने लगे हैं। आइए जानते हैं फूलों की खुशबू से शुरू होने वाले इस व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं के बारे में:
मधुमक्खी पालन शुरू करने का सही समय: व्यावसायिक दृष्टि से मधुमक्खी पालन शुरू करने का सबसे उपयुक्त समय शीत ऋतु में अक्टूबर-नवम्बर एवं बसन्त ऋतु में फरवरी-मार्च का महीना होता है। इस समय आमतौर से खेतों और वृक्षों पर फूलों की भरमार होती है। मधुमक्खियाँ आसानी से फूलों का रस एकत्र कर शहद में परिवर्तित कर लेती हैं। साथ ही, इस व्यवसाय में उचित तापमान का भी बहुत महत्व है। मधुमक्खियों के अनुकूल तापमान होने से शहद उत्पादन में वृद्धि होती हैं। इस मौसम में रानी मक्खी अधिक अण्डे भी देती है। इसलिए आर्थिक लाभ के नजरिए से मधुमक्खी पालन का कार्य उपयुक्त समय में शुरू करना बहुत जरूरी होता है।
स्थान का चुनाव: इसके लिए पर्याप्त धूप, छाया, शुद्ध हवा और पानी की उपलब्धता वाले स्थान उपयुक्त होते हैं। ऐसा स्थान चुने जहॉ पर्याप्त मात्रा में फूल वाले पेड़-पौधे और फसलें उपलब्ध हो। यदि खेती के साथ इस व्यवसाय को करते हैं तो अलग से भूमि की आवश्यकता नही होती। मधु बाक्सों को खेत की मेड़ों पर, वृक्षों के नीचे, फूलों के खेत वृक्ष की टहनियों पर आसानी से लटकाया जा सकता है। शुद्ध रूप से मधुमक्खी पालन 100 बॉक्स से शुरू करने के लिए आधा से 1 एकड. भूमि की जरूरत होती है। देश के किसान अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी सुविधा और फसलों की उपलब्धता के अनुसार निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखते हुए स्थान का चुनाव करना चाहिए।
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फल वाले वृक्ष: आम, अनार, ऑवला, आलू बुखारा, आड़ू, अमरूद, अखरोट, लोकाट, लीची, जामुन, इमली, सेब, नाषपाती, नारंगी, नीबू, फालसा, नारियल, खजूर इत्यादि।
फूलों की खेती: गेंदा, गुलाब, गुलमोहर, गुलदावदी, रसबरी, सुरजमुखी, ग्लैडियोलस, गैलार्डिया, डहेलिया, डेजी, रेलवे क्रीपर, कौस-मौस, गुलमेंहदीं इत्यादि।
सब्जियों की खेती: मूली, शलजम, प्याज, लहसुन, लोबिया, मिर्च, पेठा, गोभी, धनियॉ, जीरा, करायल, लौकी, भिण्डी, बैंगन, टमाटर, चुकन्दर, चौलाई, गाजर, खीरा, कद्दू, करेला, ककड़ी, सीताफल इत्यादि।
अन्न की फसलें: अंगूर, ज्वार, बाजरा, चना, मटर, मसूर, अरहर, गेहूँ, सरसों, तोरिया, इत्यादि।
जंगली वृक्ष, झाड़ियाँ और घासें: कचनार, सफेदा, पीपल, बरगद, दालचीनी, नीम, पद्म, बबूल, बहेड़ा, बेर, रीठा, बांस, लसोडा, ओल, सिरस, शीशम, सेमल, अमलतास, खैर, गूलर, महॅुआ इत्यादि। झाड़िया जैसे- कनसानी, नागफनी, भांग, रामबांस, कुन्ज, कलथुनियाँ, स्यूना, धिंगारू, हिसालू इत्यादि। घासें जैसे- बरसीम, दूब, अंजन घास, धंमन घास, सेफरन, क्लेवर, रिजका (अल्फा-अल्फा) इत्यादि।
मधुमक्खियों के क्रय के समय ध्यान देने वाली बातें: इस व्यवसाय को अच्छे स्तर पर शुरू करने के लिए कम से कम 50 से 100 कालोनियों से करना चाहिए। ध्यान देने वाली बात यह है कि रानी मक्खी पूर्ण स्वस्थ एवं युवा अवस्था की हो। फ्रेमों पर लगे हुए छत्ते के कोषों में पर्याप्त मात्रा में शहद, पराग, अण्डे तथा इल्लियाँ उपलब्ध हो। नर मक्खियों की संख्या कम होनी चाहिए।
कम पूँजी से अधिक कमाई: इस व्यवसाय को शौकिया एवं व्यवसायिक दानो तरह से शुरू किया जा सकता है। इसको कम पूँजी से भी शुरू कर सकते हैं। खास बात यह है कि इसमें अधिक समय देने की भी आवश्यकता नही पड़ती है। जब आप अपने मुख्य कार्य से ऊब जाय और अपने को थका महसूस करें, तो थोड़ा समय इन नन्हें-मुन्हेें कीटों दे दें। हमारे देश में मुख्य रूप से मधुमक्ख्यिों की चार प्रजातियॉ उपलब्ध हैं।
एपिस फ्लोरिया: यह शारीरिक रूप से सबसे छोटी मधुमक्खिी होती है। कम ऊँची झाड़ियों तथा पेड़ों की डाली पर इकहरा छत्ता बनाती हैं। यह प्रजाति कम उत्पादन एवं भ्रमणषील स्वाभाव होने के कारण आर्थिक रूप से उपयोगी नही है। इससे एक वर्ष में आधे से एक किग्रा शहद प्राप्त होता है।
एपिसडोरसेटा या सारंग मधुमक्खी: यह सबसे बड़े आकार एवं स्वभाव से सबसे गुस्सैल होती है। यह ऊँची दीवारों, छज्जों, ऊँचे पेड़ों की डाली पर तथा चट्टानों पर इकहरा छत्ता बना लेती है। इनसे एक वर्ष में 5 से 35 किग्रा0 तक शहद मिल जाता है। यह अत्यन्त भ्रमणशील होने के कारण इनका पालना अभी तक सम्भव नहीं हो सका है।
एपिस सिराना इण्डिका या भारतीय मधुमक्खी: ये मधुमक्खियाँ अपने स्वभाव एवं आदत के कारण वृक्षों व दीवारो की खोखली जगहो तथा चट्टानों आदि की दरारों में छत्ते बनाकर अंधेरे में रहना पसन्द करती हैं। इन छत्तों की संख्या समान्तर रूप से 4-5 से लेकर 10-11 तक हो सकती है। एक छत्ते में प्रतिवर्ष 6-7 किग्रा तक शहद प्राप्त हो जाती है। ये मधुमक्खियाँ थोड़ी भी असुविधा होने पर अपना स्थान परिवर्तन कर लेती हैं। इसलिए इन्हें मधुबक्सों (हाइब्स) में पाला जाता है।
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एपिसमेलीफेरा या यूरोपियन मधुमक्खीं: इनका मूल स्थान सिसली को छोड़कर पूरा इटली है। भारत में इन्हें सन् 1962 में लाया गया था। उत्तरी भारत में इसे प्रमुख पालतू मधुमक्खी कहा गया है। ये स्वभाव से शान्त व मेहनती होती है। इनमें स्थान परिवर्तन की आदत बहुत कम होती है। इन्हेे आसानी से मधुबक्सों में पाला जाता है। एक मौनवंष (कालोनी) से प्रतिवर्ष 25-40 किग्रा शहद प्राप्त किया जा सकता है। अनुकूल प्रबन्ध व्यवस्था उपलब्ध कराने पर मधुमक्खी पालक 50-60 किग्रा0 शहद आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। वर्तमान में पंजाब, हरियाणा, उत्तर-प्रदेष, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में एपिस मेलिफेरा का पालन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
मधुमक्खियों का परिवार: मधुमक्खियाँ संगठित होकर अपने वंश (कालोनी) में तीन सदस्यों सहित रहती हैं। इनमें नर, रानी, एवं श्रमिक मक्खियाँ होती है। लिंग भेद के आधार पर इनका कार्य बँटा होता है।
नर मधुमक्खी: इनकी संख्या छत्ते के कुल संख्या का लगभग 1 प्रतिशत होती है। एक छत्ते में लगभग 300-500 नर मधुमक्खियाँ उपलब्ध रहती हैं। इनका पिछला भाग काला तथा मोटे आकार का होता है। इनका मुख्य कार्य रानी मधुमक्खियों को आकर्षित करना होता है। इसके लिए ये गुंजन करती रहती हैं। बक्से से बाहर निकलकर सैकड़ों नर मधुमक्खियों में से कुछ को ही रानी मक्खी के साथ संभोग करने का मौका मिल पाता है। इसके तुरन्त बाद इनकी मृत्यु हो जाती है। शेष नर मक्खियाँ वापस खाने के ऊपर टूट पड़ती हैं। इन्हें श्रमिक मक्खियाँ भोजन कराती हैं। नर की औसत आयु लगभग 2 माह की होती है।
रानी मधुमक्खी: सम्पूर्ण वंश में रानी मधुमक्खी अकेली होती है। यह भूरे रंग की होती है। उदर नुकीला होता है। पूर्ण विकसित मादा मक्खी आकार में सबसे बड़ी होती है। इसका एक मात्र कार्य अंडे देना तथा वष वृद्धि करना होता है। यह लगभग 800-1200 अण्डे प्रतिदिन देती है। इन अण्डों का भार इनके शरीर से लगभग दो गुना होता है। यह अपनी इच्छानुसार गर्भित अथवा अगर्भित अण्डे देती है। गर्भित अण्डों से श्रमिक एवं रानी मक्खियाँ जबकि अगर्भित अण्डों से नर मक्खियाँ पैदा होती हैं। समय के साथ-साथ इसकी अण्डा देने की क्षमता का हृास होता जाता है।
श्रमिक मधुक्खियाँ: ये आकार में छोटी तथा अविकसित मादाएं होती हैं। इनकी संख्या छत्ते में लगभग 100 प्रतिशत होती है। इन मक्खियों में मातृ-भाव निहित होने के कारण वंष के लालन-पालन और उसके कल्याण का पूरा दायित्व रहता है। इसके अतिरिक्त श्रमिक मक्खियों के मुख्य कार्य निम्न हैं- रानी मधुमक्खी के अण्डे देने के लिए जगह तैयार करना, छोटे बच्चों की देखभाल, पुष्प रस व पराग का सेवन कर मोम बनाना और छत्ते का निर्माण करना, पुष्परस में उपस्थित आवश्यकता से अधिक पानी को सुखाना, छत्ते की सफाई एवं रक्षा करना, मृत मक्खियों को छत्ते से बाहर निकालना, मौसम के अनुसार छत्ते के तापमान को स्थिर रखना, बड़ी मक्खियों द्वारा बाहर से लाये गये मधुरस तथा पराग को इकट्ठा करना आदि प्रमुख है।
मधु बाक्सों का स्थानान्तर: मधुबाक्सों को रात्रि के समय स्थानान्तरित करना उचित रहता है। इसके लिए बक्से की तली काली तख्ती, शिशु कक्ष तथा अन्दर के ढक्कन को लोहे की पत्ती से जोड़ देते हैं। बाहरी प्रवेश द्वार पर मधुमक्खियाँ बाहर न निकलने तथा हवा के आवागमन के लिए जाली फिट कर दी जाती है। अब बक्सा को स्थानान्तरित किया जा सकता है। घ्यान रखे की यातायात के समय झटके न लगे, नही तो क्षति की सम्भावना अधिक रहती है। आवागमन में यदि किसी फ्रेम का छत्ता टूट गया हो तो उसे ठीक करके बक्से की सफाई कर देनी चाहिए।
मधुमक्खियों के शत्रु: मधुमक्खियों के शत्रु में मुख्यतः बर्र, कुछ पक्षियाँ, पतंगा, गिरगिट, छिपकली, तिलचट्टा, चीटें-चीटियाँ, चूहों इत्यादि होते हैं। मधुमक्खियों को इनके शत्रुओं से सुरक्षा करना आवश्यक होता है। इसके बचाव का सर्वोत्तम तरीका प्रति छत्ता मधुमक्खियों की संख्या को बढ़ाना चाहिए। ऐसा करने सें किसी भी शत्रु को हमला करने का साहस नही होता है। फिर भी मधु बक्सों को समय-समय पर देखभाल करते रहना चाहिए। यदि बक्सों के दिवारों पर चटकन, दरार या छिद्र इत्यादि हो जाये तो उसे गोबर या अच्छी गीली मिट्टी से बन्द कर देने से किसी भी शत्रु का अन्दर जाने का भय नही रहता है।
उपकरणों की आवश्यकता: मधुमक्खी पालन शुरू करने के लिए मधुबाक्स, हाइव स्टैण्ड, हाइप टूल, मुँह रक्षक, जाली, दास्ताने, धुऑदायी आदि उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। इसके पश्चात् समय-समय पर मोमी शीट, मक्खियों को कृत्रिम भोजन देने के लिए बर्तन, शहद निकालने की मषीन तथा चाकू इत्यादि की आवष्यकता पड़ती है।
शहद निकालना: प्रत्येक फ्रेम में लगभग 80 प्रतिशत कोष्ठ मधुमक्खियों द्वारा बन्द कर देने के उपरान्त मधु कक्ष मे स्थित छत्तो से शहद निकालने का काम करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले बक्से मे धुऑ छोडकर फ्रेम से मधुमक्खियों को हल्के से झटक कर बक्से से बाहर निकाल लेते है। इसके बाद स्वच्छ चाकू को पानी मे गर्म करके कपडे़ से पोछ कर छत्ते से मोम की टोपियां उतारते हैं। इन टोपी उतारे फ्रेमों को मशीन की सहायता से शहद निकालने का कार्य करते हैं, जिससे छत्ता सुरक्षित बना रहता है। अब इन खाली किए गए फ्रेमों को फिर से मधु कक्ष मे रख देते है, जिससे मधुमक्खियॉ पुनः इन छत्तो में शहद एकत्रित करना शुरु कर देती है। इस प्रकार मशीन द्वारा शहद निकालने में छत्ते पर लगंे अण्डे, लार्वा, प्यूपा आदि नष्ट नही होते और शहद भी शुद्ध, गंदगी रहित प्राप्त होती है। आमूमन देखा गया है कि इस प्रकार से मौन पालन करने से प्रथम वर्ष प्रति बाक्स लगभग 20-25 किग्रा शहद आसानी से प्राप्त हो जाता है। इसके पश्चात उत्पादन बढ़ना शुरु हो जाता है और यह उत्पादन 30-40 किग्रा प्रति बाक्स तक पहुँच जाता है।
मधुमक्खी पालन के मुख्य उत्पाद:
1. शहद: इसका उपयोग खाने, दवाइयों, और ब्यूटी प्रोडक्ट्स में होता है।
2. मधुमक्खी मोम: मोमबत्ती, क्रीम, लिप बाम आदि में प्रयोग होता है।
3. रॉयल जैली: महंगी दवाओं और कॉस्मेटिक्स में इस्तेमाल होता है।
4. प्रोपोलिस: एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक, जो मधुमक्खियां पेड़ों से एकत्र करती हैं।
5. पोलन/परागकण: प्रोटीन युक्त भोजन, जिसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाइयों में होता है।
100 बक्सों से कैसे शुरू करें
यदि कोई किसान 100 मधुमक्खी बक्सों से मधुमक्खी पालन शुरू करता है, तो अनुमानित आय और लागत कुछ इस प्रकार हो सकती है:
विवरण | अनुमानित राशि (₹) |
100 मधुमक्खी बक्से (प्रत्येक ₹3,000) | ₹3,00,000 |
उपकरण, प्रोसेसिंग यूनिट, शेड आदि | ₹1,00,000 |
कुल निवेश | ₹4,00,000 |
सालाना शहद उत्पादन (100 बॉक्स × 20 किग्रा) | 2000 किग्रा |
शहद की औसत कीमत (₹250/किग्रा) | ₹5,00,000 |
मोम, रानी मधुमक्खी, परागण से अतिरिक्त आय | ₹1,00,000 |
कुल वार्षिक आय | ₹6,00,000 |
शुद्ध लाभ (व्यय हटाकर) | ₹4,50,000 से ₹5,00,000 |
यानी 100 बक्सों से आप सालाना ₹4 लाख से ज्यादा कमा सकते हैं, वो भी खेती के साथ–साथ।
प्रशिक्षण एवं अनुदान: मधुमक्खी पालन के लिए नाबार्ड, कृषि मंत्रालय, खादी ग्रामोद्योग आयोग और राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड किसानों को प्रशिक्षण और उपकरण खरीदने में सब्सिडी दी जाती है। उत्तर प्रदेश सरकार किसानों को मधुमक्खी पालन अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। कृषि विज्ञान केंद्र एवं राज्य मधुमक्खी पालन संस्थानों से प्रशिक्षण दिलाया जाता है। इस दिशा में सरकार कई योजनाएँ चला रही है, जिनके जरिए सब्सिडी प्रदान की जाती है। सरकार की अलग-अलग योजनाओं के तहद 25 लेकर 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है, जिसका उद्देश्य कृषि उत्पादकता बढ़ाना, पर्यावरण संतुलन बनाए रखना और किसानों की आय बढाकर आत्मनिर्भर बनाना है।
मधुमक्खी पालन का सकारात्मक पहलू: यह एक लाभकारी, कम निवेश वाला और प्राकृतिक पर्यावरण हितैषी व्यवसाय है। यदि आप सही प्रशिक्षण और उचित देख-रेख करते करते हैं, तो इस व्यवसाय से 1-2 वर्षों में पूंजी वापस हो जाती है।